संयुक्त राष्ट्र में बार बार रूस के खिलाफ वोट ना करने को लेकर अमेरिका अब भारत के रूख को लेकर अनर्गल बयानबाज़ी कर रहा है। यूएस चाहता है कि कोई भी देश का रूस का समर्थन ना करे। हाल के दिनों में संयुक्त राष्ट्र में उसने जितनी बार रूस के खिलाफ प्रस्ताव लाया है, भारत ने उस प्रस्ताव पर वोटिंग से खुद को अलग कर लिया है। विशेषज्ञों की मानें तो इसका अप्रत्यक्ष मतलब यह हुआ कि भारत भी एक तरह से रूस के साथ ही है। इससे अमेरिका चिढ़ गया है। अब उसने भारत के खिलाफ भी क़दम उठाने की बात कही है। बता दें कि हाल ही में यूरोपीय देशों और दूसरे पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों से रूस को अब थोड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
हालांकि, इन प्रतिबंधों के जवाब में रूस ने भी पश्चिमी देशों को अपने यहां से आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं को कम करने का फैसला किया है। उसकी भरपाई करने के लिए राष्ट्रपति पुतिन ने अब भारत को सस्ता कच्चा तेल मुहैया कराने का ऑफर दिया है। इसे देखते हुए यूएस फिर से आगबबूला हो गया है। व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव 'जेन साकी' ने पत्रकारों के सवाल जवाब में एक पत्रकार के पूछे जाने पर कहा कि 'आपको यह तय करना होगा कि जब इतिहास लिखा जा रहा है तो आप किस तरफ खड़े हैं। रूसी राजनैतिक नेतृत्व का समर्थन करना सीधे सीधे उनके आक्रमण को समर्थन करना है।' बता दें कि राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि जो भी देश रूस के साथ रिश्ता रखेगा, उस पर भी प्रतिबंध लगाए जाएंगे।
प्रतिबंध लगाने में अमेरिका कर रहा पक्षपात
अमेरिका शुरू से ही दोहरा मापदंड अपनाता आया है। एक तरफ तो वह रूस से सामान खरीदने वालों पर भी प्रतिबंध जैसी कारवाई करने की बात कहता है, वहीं दूसरी तरफ़ उन यूरोपीय देशों के खिलाफ कोई क़दम नहीं उठाता जो आज भी रूस से ही तेल और गैस की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं। इन देशों पर कारवाई करने के सवाल को लेकर व्हाइट हाउस चुप्पी साध लेता है। बता दें कि अभी यूरोप 45% गैस की अपनी आपूर्ति रूस से ही कर रहा है। जर्मनी भी 55% प्राकृतिक गैस, 52% कोयला और 32% खनिज तेल रूस से ही खरीद रहा है। लेकिन वाशिंगटन के अनुसार, भारत अगर सस्ते दामों पर रसियन तेल खरीदता है तो उसे अपने बारे में सोचना होगा।
यही नहीं, कई सारे यूरोपीय और अमेरिकी विशेषज्ञों ने तो अमेरिकी सरकार से भारत पर प्रतिबंध की भी मांग की है। उनका मानना है कि भारत यदि रूस से तेल खरीदता है तो यह उनके मूल्यों के खिलाफ होगा और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए। पत्रकार ट्रिश रीगन ने कहा कि भारत ऐसा करता है तो उसे प्रतिबंधों के लिए तैयार रहना होगा। आगे उन्होंने धमकी देते हुए यह भी कहा कि इन प्रतिबंधों से भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। इनके अलावा ब्रिटेन के गिने चुने पत्रकारों की भी मांग यही है। आपको बता दें कि भारत ने अभी रूस के प्रस्ताव पर फैसला नहीं लिया है। केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 14 मार्च को राज्यसभा में कहा कि भारत सरकार सस्ते तेल को लेकर रूस के प्रस्ताव पर विचार कर रही है और जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।
नाटो सदस्य यूक्रेन के खिलाफ लगातार रूसी सैन्य कार्रवाई की निंदा तो कर रहे हैं, लेकिन इस बीच वे अपनी जरूरतों का भी ध्यान रख रहे हैं, जो रूस से पूरे होते हैं। ये देश रूस से लड़ने के लिए यूक्रेन को हथियार तो मुहैया करा रहे हैं, लेकिन प्रतिदिन अरबों डॉलर के तेल, गैस और अन्य पेट्रोलियम पदार्थ भी रूस से खरीद रहे हैं, जिससे पुतिन को कोई खास आर्थिक नुकसान होने वाला नहीं है। दूसरी तरफ अमेरिका और कनाडा के जवाब में रूस ने भी अमेरिकी राष्ट्रपति 'जो बाइडेन', जेन साकी सहित शीर्ष अमेरिकी अधिकारियों तथा कनाडाई प्रधानमंत्री 'जस्टिन ट्रुडो', रक्षा मंत्री अनीता आनंद सहित अन्य अधिकारियों की रूस यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया है।
यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका इस तरह का पक्षपात कर रहा है। उसने 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण के बाद भी भारत पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे, परंतु 1999 तक सभी तरह के नागरिक प्रतिबंध तथा 2001 के आखिर तक सारे रक्षा संबंधी प्रतिबंध हटाने पड़े। 2008 में अमेरिका ने भारत को परमाणु ऊर्जा संपन्न शक्ति भी माना। मालूम हो कि अमेरिका के 96% घरेलू पोटैशियम फर्टिलाइजर की आपूर्ति अभी भी रूस से ही होती है, परंतु उसने इसे रोकने के बजाय उस 8% गैस की आपूर्ति को बंद किया है, जो रसिया से होती है। इन विशेषज्ञों ने इन सब विषयों पर आंख मूंद कर सिर्फ भारत की तरफ़ नज़र किया है कि भारत कब रूस के प्रस्ताव को स्वीकार करे और उनकी मांग को मजबूती मिले। सीधे शब्दों में कहें तो यूएसए खुद अपना किसी भी तरह का नुकसान करना नहीं चाहता, लेकिन वो यह चाहता है दुनिया के बाकी देश उसके कहे रास्तों पर चलें और उन्हें भारी नुक़सान का सामना करना पड़े। भारत में इस
व्यवहार को आम भाषा में 'दादागिरी' कहा जाता है।
Comments
Post a Comment