भारतीय इतिहास में आपने अनेकों राजाओं और रानियों के बारे में सुना होगा। उत्तर भारत में रानी दुर्गावती, रानी अहिल्याबाई होलकर, लक्ष्मीबाई, आदि के बारे में तो आप बहुत जानते होंगे। उनकी वीरगाथाएं, समाज के लिए उनके द्वारा किए गए सत्कर्म तो हम सभी को स्मरण हैं। परंतु अभी भी हम कई ऐसे राजाओं तथा रानियों के पराक्रम से अनभिज्ञ हैं, जिन्होंने शौर्य के साथ साथ समाज हित हेतु उत्कृष्ट कार्य किए।
आइए इसी कड़ी में हम जानते हैं एक ऐसी रानी के बारे में, जिन्होंने पुर्तगालियों को धूल चटाकर बार बार उन्हें घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। उस रानी का नाम था- "रानी अबक्का चौटा"।
कौन थी रानी अबक्का?
राजकुमारी अबक्का का जन्म चौटा राजघराने में 16वीं शताब्दी में हुआ था। अबक्का बचपन से ही रानी लक्ष्मीबाई और रानी चेनम्मा की तरह तेजतर्रार थीं। इन्हें भारत की प्रथम महिला स्वतंत्रता सेनानी भी कहा जाता है। चौटा वंश के राजाओं ने 'मातृवंशीय प्रणाली' की शुरुआत की, जिसमें उलाल के राजा 'तिरुमाला राय' ने अपनी भतीजी अबक्का को उलाल के सिंहासन पर बिठाया। अबक्का को बहुत कम उम्र में ही तलवारबाजी, तीरंदाजी, सैन्य रणनीति, कूटनीति सहित अन्य राजकीय मुद्दों पर ज्ञान प्राप्त हो गया था।
कहा जाता है कि राजा तिरुमला ने मंगलोर के राजकुमार लक्ष्मप्पा बंगराजा से राजकुमारी का विवाह किया। इस वैवाहिक गठजोड़ को देख पुर्तगालियों के मन में भय सताने लगा, परंतु इनकी शादी तब टूट गई, जब बंगराजा ने पुर्तगालियों के साथ समझौता कर लिया। समझौते के बारे पता चलते ही रानी अबक्का आगबबूला हो गयीं। उन्होंने राजा को समझाने का प्रयास किया, लेकिन बंगराजा पुर्तगालियों की बातों में आ चुके थे और रानी के खिलाफ हो गये। राजा की गद्दारी देख तथा अपने और अपनी बेटी की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने अपना ससुराल छोड़ अपने मायके उलाल में अपना ठिकाना बना लिया। 1498 में जब पुर्तगालियों का आगमन भारत में हुआ तो उन्होंने गोवा को अपने नियंत्रण में लेने बाद दक्षिण में उलाल साम्राज्य को अपने अधीन करना चाहा। इसके लिए उन्होंने कई बार चोरी छिपे उलाल पर हमले किए और हर बार रानी की सेना ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया। पहले तो पुर्तगालियों ने रानी को अबला समझ सैनिकों की छोटी मोटी टुकड़ियां भेजीं, लेकिन अबक्का की शौर्यता के आगे एक भी पुर्तगाली टिक न सका, अपितु उसे दुनिया को अलविदा कहना पड़ा। इस बीच रानी ने समुद्री रास्ते से अरबों के साथ अपना व्यापार भी शुरू किया।
कुछ समय बाद रानी के दुश्मनों ने उनको अपने अधीन रहने और सुरक्षा देने का वादा किया, परंतु अबक्का ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। अबक्का का यह रवैया देख पुर्तगाली अचंभित हो गये और उन्हें अपने अपमान का आभास हुआ। 1555 ईस्वी में पुर्तगाल ने अपने एडमिरल 'डॉम अल्वारो डी सिल्वेरा' (Dom Àlvaro de Silveira) को युद्ध के लिए भेजा, भारतीय नारी की वीरता के आगे एडमिरल कहां टिकने वाला था। पुनः 1558 और 1567 में पुर्तगाली सेना ने अपने विशाल सैनिकों की फौज के साथ उलाल राज्य पर हमला किया, पर इस बार भी रानी ने कोझिकोड के ज़ामुरीन के साथ मिलकर उन्हें पीछे धकेल दिया। अबक्का की यह बहादुरी देख उनके दुश्मन सकते में पड़ गए और अगली बार उन्होंने रानी को हराने के लिए साज़िश रची।
1568 ईस्वी में पुर्तगालियों ने छिपकर हमला किया। पुर्तगाली जनरल 'पिक्सोटो' (Peixoto) ने अपनी सेना के साथ शाही महल में प्रवेश कर उसे अपने नियंत्रण में ले लिया। इस हमले में रानी बच कर निकल गयीं और एक मस्जिद में शरण लिया तथा एक ही रात में उन्होंने 200 सैनिकों की सेना तैयार की और पुर्तगालियों पर आक्रमण किया। रानी के इस जवाबी हमले में जनरल पिक्सोटो मारा गया तथा अनेकों पुर्तगाली सैनिकों को बंदी बना लिया गया। एक स्त्री के हाथों बार बार बुरी तरह मुंह की खाकर पुर्तगालियों की हिम्मत ख़त्म हो चुकी थी। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उलाल राज्य को कैसे अपने नियंत्रण में लिया जाए, क्योंकि उलाल एवं मंगलोर राज्य समुद्री व्यापार की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण थे। 1569 में रानी के पूर्व पति बंगराजा ने गद्दारी की। उसने छोटी सी लालच में पुर्तगालियों को रानी अबक्का की सारी युद्ध रणनीति बता दी। बंगराजा की इस गद्दारी के कारण पुर्तगालियों से लड़ते लड़ते रानी अबक्का चौटा वीरगति को प्राप्त हो गयीं।
वर्ष 2015 में रानी अबक्का चौटा के पराक्रम को सम्मान के में भारतीय नौसेना ने अपने एक जहाज़ का नाम 'रानी अबक्का' रखा।
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